रविवार, मार्च 10, 2013

उनका क्या होगा , जो मोम से ढले हैं

पत्थर  पिघल गए  इन  सांसों  की  गर्मी  से,
उनका   क्या  होगा , जो  मोम   से    ढले  हैं ?

चलता    जा   रहा  मेरे  दिल  का    काफिला,
जाने  क्या है मंजिल जिस  ओर पग  चले   हैं .


मेरी   ही   अदालत   में   मेरा   ही   मुजरिम,
देकर  अगली   तारीख़  मुझको   ही छले   हैं ?

फूल     पर   पड़े   कि   शोलों   पर    पड़े    हैं , 
एक बिजली   कौंधती   है    जब पाँव  जलें  हैं


जैसे    देखता   हो   कोई    दिन   में    सितारे,
वैसे  गरीब   के   मन   कोई    ख़्वाब   पले   हैं.

जाते  हैं  कई   उड़  कर  बुलंदी   की   मकाँ   पर,
 वो  गिर कर  उंचाईयों     से     हाथ     मले   हैं |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "