बुधवार, फ़रवरी 27, 2013

बंजर आदमी

 भावना   से     हो  गया     बंजर    आदमी,
  फिरता  है  लिए  हाथों   में  खंजर  आदमी |

 वैर   की अग्न   से  सूखा,  प्रेम  की नदी को,
 बन    बैठा     विष    भरा   समंदर   आदमी,

देख    कर   दूसरे     की   शांति   अमन  को ,
सुलग    रहा     अंदर   ही     अंदर    आदमी 

 गैर     भी     थे   अपने,    ऐसा    चलन   था
रहता       था     मस्त       कलंदर     आदमी

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

शुक्रवार, फ़रवरी 01, 2013

समय का यह ठिठुरा संवाद

वेदना के तारों का ,
छिड़ा मन से विवाद,
देख कर ,
समय का यह ठिठुरा संवाद !
रुग्न बसंती बयार,
कुपित श्रृष्टि का सार,
प्रकृति भी मौन ,
वो संचालक कौन ?
प्रत्यक्ष है प्रमाणित,
फिर भी है निर्विवाद !
सलज से अब मूक नैनों के शील,
पाप की सरिका कान्तिमान ,
अँधेरे का चारण बना विहान |
समीहा में जलते प्राण
कैसे हो युगनिर्माण ?
वेदना के तारों का ,
छिड़ा मन से विवाद,
देख कर ,
समय का यह ठिठुरा संवाद !