शनिवार, दिसंबर 22, 2012

नारी सिर्फ एक मादा देह नहीं |

नारी   सिर्फ एक मादा  देह नहीं ,
 प्रकृति की सुन्दरतम रचना है |
जैसे  तुम हो पुतले  ,
हाड़ मास  के बने हुए |
जीती , जागती , साँस लेती है ,
वो भी बिलकुल  तुम्हारी  तरह |
कैसे समझ लिया नारी  को,
 सिर्फ भोग की वस्तु ?
जब चाहा रौंद डाला |
इससे तुम्हारी पुरुषता
उसी दिन नामर्दी में तब्दील हो गयी ,
जिस दिन किया ,
 किसी अबला के हया को तार -तार |
भूल गए शायद ?
तुम्हारे अस्तित्व का कारण भी ,
वो ही है एक मादा देह |
फिर कैसे मिलाते हो ,
नज़रें , किसी से ?
जो अपने कमजोरी को ,
पुरुषत्व समझ कर समझता है,
 एक निरीह  को रौंद कर ,
अपनी मर्दानगी साबित  कर दी  है ,
धिक्कार है ऐसे कापुरुषों पर,
अपनी ही रचना पर आज प्रकृति  क्यों है मौन ?
अबला के जख्म पर दे ऐसी मरहम ,
ऐसे कापुरुषों का  पुरूषत्व
कई सदियों तक न जागे  |