सोमवार, सितंबर 10, 2012

आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए

थम   गया  दंगा,  कत्ल   हुआ      आवाम     का , 
आ  गए घर जलानेवाले   ,  हाथों में  मरहम  लिए |

तारीकी  के अंजुमन   में,        साज़िश की  गुफ़्तगू,
आ गए सुबह    अमन का ,  हाथों  में  परचम  लिए |

सज़ावार     जो  हैं, "रजनी"  वो       खतावार     भी,
आ गए  चेहरे पर डाले नक़ाब  ,हाथों में दरपन लिए |
 

जुड़ा है दर्द ज़िन्दगी से,सूदखोर की तरह

 ख़्वाब आयें पलकों पर ,तमन्ना नहीं रही,
 कि  रातें  भी तो अब सुकून से कटती नहीं ,| 

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लिखनेवाले   ने, कतरे  को   भी  दरिया  लिखा ,
जब बात आई इतिहास की दरिया नहीं मिला कहीं |

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 हर  बार चुकाने की  सोचूँ   दर्द का ब्याज,
पर जुड़ा है  दर्द ज़िन्दगी से,सूदखोर की  तरह |
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" जो हर   बात पर दाद देते हैं , हर   बात  पर  वाहवाही ,
"सब धान बाईस पसेरी "उनकी महफ़िल  में गया तो पाया |

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एक राह है जो   मंजिल तक जाती है,
एक राह है   जो  मंजिल   भुलाती   है |

"रजनी"