रविवार, अप्रैल 29, 2012

मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ






मजदूर के दर्द पर मेरी एक रचना जो बहुत पहले लिखी थी, आज आप सभी के बीच साझा कर रही

आज    दिल  का    दर्द    घोल    रहा   हूँ,
मज़दूर  हूँ अपनी मजबूरी  बोल  रहा   हूँ |

ग़रीबी      मेरा     पीछा   नहीं       छोड़ती,
क़र्ज़    को   कांधे पर   लादे   डोळ  रहा हूँ |

पसीने   से तर -ब -तर   बीत   रहा  है  दिन,
रात पेट  भरने को नमक  पानी  घोल रहा हूँ |

आज    दिल     का   दर्द    घोल     रहा   हूँ,
मज़दूर    हूँ   अपनी    मजबूरी  बोल  रहा हूँ |

बुनियाद   रखता    हूँ  सपनों    की   हर  बार,
टूटे    सपनों   के    ज़ख्म   तौल    रहा     हूँ |

मज़दूरी   का   बोनस     बस      सपना    है,
सपनों   से   ही   सारे    अरमान   मोल  रहा हूँ|

रजनी नैय्यर मल्होत्रा