शुक्रवार, फ़रवरी 24, 2012

जैसे कोई ख़्वाब से हिलाकर जगा दिया हो

दिन इधर जो  बीते कुछ इस तरह से  मेरे
जैसे कोई ख़्वाब से हिलाकर जगा दिया हो

दे  कर   सामने    मुरादों  से   भरी  थाली
लेने   की सूरत  में  फ़ौरन  हटा   दिया हो

हसरतें  देकर"रजनी" उमंगों से  जीने  की
आख़िरी ख्वाहिश    में कज़ा दे   दिया   हो


शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2012

गुजरे बरस ये तेरह , जैसे कटे बनवास

गुजरे बरस   ये   तेरह , जैसे कटे बनवास ,
फिर उठी मन में  कामना   मधुमास   की.

आज मेरे विवाह को तेरह वर्ष पूरे हो गए, अपने मन के विचारों को शब्दों में पिरो कर हर वर्ष की तरह आज भी एक रचना  अपने पति राजेश के लिए


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मैं शब्दों    में बंधकर   लड़ी  बनू,
तुम   मेरे  गीत के तान  बनो.

थक गए पग मेरे  चलकर  तन्हा ,
मेरे ज़र्जर  तन   के प्राण  बनो.

मै   बनूँ   दीपों  की    मालिका,
तुम अमर  लौ   की   बान बनो.

मै   बन   जाऊं  ग़ज़ल    तेरी,
तुम    महफ़िल  की  शान बनो.

मै पावस की सुरभित  रजनीगंधा,
तुम खुला निलाभ आसमान बनो.

मै बनू   सुहासिनी तेरी  "रजनी" ,
तुम जन्मों  तक मेरे सुजान बनो.

"रजनी"
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गुरुवार, फ़रवरी 16, 2012

टूटी कश्ती थी, मझधार में चल रही थी

टूटी हुई कश्ती थी मझधार में चल रही थी 
कभी   डूब रही  थी    कभी संभल रही  थी

वक़्त की  मुट्ठी में  थी   तकदीर   मेरी  
कभी बिखर रही थी कभी बदल रही थी

हिकायत -ये माज़ी में   डूबे   चश्म- तर
आंसुओं की बारिश में  भी जल रही  थी

अमा निशा की ख़ामोश फिज़ा थी, "रजनी"
ख़्वाब था हक़ीकत सा और मै बहल रही थी

मंगलवार, फ़रवरी 14, 2012

ये गुलाब




एक सुर्ख़ गुलाब देकर
कर देते हैं
अपनी  भावनाओं का
इजहार लोग़
यदि
यही है
अपने प्रीत को बयाँ करना
तो कई बार बांधे मैंने
तुम्हारे जुड़े में सुर्ख़ गुलाब |
और , तुम मुस्कुरा कर
अपने हाथों से
छू कर गुलाब को
कह देती हर बार
कितनी फबती है
मेरे  गौर वर्ण पर,
काले बालों में
यह लाल गुलाब !
मै हर बार ठगा सा रह गया
शायद
कभी तो समझ पाओगी
मेरे अनकहे अहसास को |
क्या ये गुलाब
जिसे ,
प्रेम का प्रतीक कहते  आये हैं लोग़
वो  रह गया
मात्र एक
श्रृंगार  बन कर |
कभी देवताओं के सर का,
कभी रमणी के ?

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"


सोमवार, फ़रवरी 13, 2012

प्रेम , प्रेम ही होता है



प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
चंचल मन को मिलन की तिश्नगी,
जीवन को दर्पण देता है|
तन,मन धन सर्वस्व न्योछावर ,
पथरीले राहों में मंजिल को संबल देता है|
दुःख-सुख के पलों में आलिंगन देता है
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
अदभुत है इस प्रेम की रीत,
त्याग का दूजा  नाम है प्रीत|
जहाँ त्याग नहीं हो प्यार में,
वो प्यार  वफ़ा नहीं देता है |
प्रेम से  सुगन्धित संसार है,
ये फूलोँ में काँटों का हार है|
त्याग,बलिदान,वफ़ा से ,
जुड़ा प्यार का नाता है|
सिर्फ प्रेम को पाना ही नहीं,
लूट जाना भी प्यार है|
संसार से जुड़ा हर रिश्ता प्रेम से गहराता है,
वो प्रेमी,प्रेमिका,भाई ,बहन, दोस्त,पिता - माता है |
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....


"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

गुरुवार, फ़रवरी 09, 2012

प्रेम , प्रेम ही होता है



प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
चंचल मन को मिलन की तिश्नगी,
जीवन को दर्पण देता है|
तन,मन धन सर्वस्व न्योछावर ,
पथरीले राहों में मंजिल को संबल देता है|
दुःख-सुख के पलों में आलिंगन देता है
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
अदभुत है इस प्रेम की रीत,
त्याग का दूजा  नाम है प्रीत|
जहाँ त्याग नहीं हो प्यार में,
वो प्यार  वफ़ा नहीं देता है |
प्रेम से  सुगन्धित संसार है,
ये फूलोँ में काँटों का हार है|
त्याग,बलिदान,वफ़ा से ,
जुड़ा प्यार का नाता है|
सिर्फ प्रेम को पाना ही नहीं,
लूट जाना भी प्यार है|
संसार से जुड़ा हर रिश्ता प्रेम से गहराता है,
वो प्रेमी,प्रेमिका,भाई ,बहन, दोस्त,पिता - माता है |
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....


"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"