शनिवार, दिसंबर 22, 2012

नारी सिर्फ एक मादा देह नहीं |

नारी   सिर्फ एक मादा  देह नहीं ,
 प्रकृति की सुन्दरतम रचना है |
जैसे  तुम हो पुतले  ,
हाड़ मास  के बने हुए |
जीती , जागती , साँस लेती है ,
वो भी बिलकुल  तुम्हारी  तरह |
कैसे समझ लिया नारी  को,
 सिर्फ भोग की वस्तु ?
जब चाहा रौंद डाला |
इससे तुम्हारी पुरुषता
उसी दिन नामर्दी में तब्दील हो गयी ,
जिस दिन किया ,
 किसी अबला के हया को तार -तार |
भूल गए शायद ?
तुम्हारे अस्तित्व का कारण भी ,
वो ही है एक मादा देह |
फिर कैसे मिलाते हो ,
नज़रें , किसी से ?
जो अपने कमजोरी को ,
पुरुषत्व समझ कर समझता है,
 एक निरीह  को रौंद कर ,
अपनी मर्दानगी साबित  कर दी  है ,
धिक्कार है ऐसे कापुरुषों पर,
अपनी ही रचना पर आज प्रकृति  क्यों है मौन ?
अबला के जख्म पर दे ऐसी मरहम ,
ऐसे कापुरुषों का  पुरूषत्व
कई सदियों तक न जागे  |

गुरुवार, दिसंबर 20, 2012

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना

मां    शारदे,     वीणाधारी     हे  श्वेत   कमल आसिनी ,
हे     ज्ञान   की     देवी,    श्वेत   पुष्प    अभिलाषिनी

संसार के मानस हो गए धूसरित ,खोकर व्यभिचार में
कर   दो    अपने  ज्ञान की     बारिश, अज्ञानी संसार में
 
कर जोड़    है विनय निवेदन , चरण   कमल में  आपकी
लाज    रखो ज्ञान की    देवी  संसार से 
नाश करो पाप की 

हो    गए     हैं सभी    नेत्रविहीन,   भोग    के   प्रकाश से
करते   जा   रहे कर्म     अनैतिक , रोको      ऐसे   राह से

छा    गया है   दुराचार क्यों ? अज्ञानियों   के  आचार में
न   चित सयंम , न   वाक् संयम, न  संयम व्यवहार में

हे    बुधिज्ञान       प्रदायिनी , हे     मधुर    कंठ   दायिनी
भावयुक्त     साधना    की   , अमोघ    फल     प्रदायिनी

सुर -    मुनि    मानस पाने   को    कला  ज्ञान - विज्ञान
कर    वंदन  ,   नित    करें    तेरे    चरणों    का    ध्यान

हत्यारे     वाल्मीकि    को      दिया   तूने , उत्तम  ज्ञान
रामचरित    की    रचना    कर   पाई   जग  में सम्मान

माँ   शारदे   "रजनी"    को  भी  दो नैतिकता का ज्ञान
आई    मां शरण आपकी ,रहे   मेरा   सत्कर्मों में ध्यान

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
बोकारो थर्मल (झारखण्ड)

सोमवार, दिसंबर 17, 2012

चांदनी रात मिलती रहे |


जीवन की आपाधापी  के ,
उठते  हुए    बादल     से,  
अहसास  की   धरा    पर,
उम्मीद की फ़सल खिलती रहे |

घुमड़ते   हुए  ख्याल  ,
कुछ उलझे से  सवाल,
कभी बूंद बनकर बरसे ,
कभी ज्योति सी  जलती  रहे  |

जुगनुओं सी भटकाव में,
कुछ धूप  में कुछ छाँव में ,
असंख्य   अनुभूतियाँ
जीवन  में मिलती रहे |


अश्रुपूरित नयन  लिए ,
कभी उल्लसित तरंग लिए
एक सम्पूर्ण गगन लिए,
विह्वल ,आकुल चातक से
चांदनी रात  मिलती रहे |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

सोमवार, अक्तूबर 15, 2012

मुरझा गयी हैं कलियाँ बिन बागवान के

एक ग़ज़ल महबूब के नाम ..........

हो जाती ग़ज़ल खिलकर गुलाब सी,
एक बार वो फिर से दीदार दे जाते |

हो जाती मदहोश लिपट कर "चांदनी रात"
संग जागकर फिर वही ख़ुमार दे जाते |

ले जाते मेरी भीनी सी खुशबू की सौगात
एक बार पहलू में आकर वो प्यार दे जाते |


मुरझा गयी हैं कलियाँ बिन बागवान के,
उन कलियों को फिर वही बहार दे जाते |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
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बुधवार, अक्तूबर 10, 2012

जल रहा दिया अब तक अपनी तकदीर से

तेरे  ख्याल   से    कर    लिए   दिल  को    रौशन,
मगर  डर     है   ज़ुबां    पर   लाएँ     तो     कैसे ?

जल रहा  दिया  अब   तक    अपनी   तकदीर  से,
 मगर डर   है  छोड़  तूफान    में जाएँ    तो   कैसे ?

करने लगे    हैं  हर     तरफ  अब    ग़म  पहरेदारी ,
खुशियाँ     घर        में          आएँ       तो       कैसे ?

मुफ़लिसी बन   गयी    जिनका उमरभर  का साथ ,
वो   ईद     और      दिवाली    मनाएँ     तो     कैसे ?

बहुत  कुछ   बदल     दिया    मगरीब    की  हवा ने,
पर   अपनी    तहज़ीब   :रजनी" भुलाएँ    तो    कैसे ?

शुक्रवार, सितंबर 28, 2012

एक दरिया ख्वाब में आकर यूँ कहने लगा


कभी जलते चराग के लौ को बना कर अपना  साथी,
हमने    दास्तान सुना   दी गम   -- ज़िन्दगी की |

कभी   हवा के     झोंके  संग    "रजनी" उड़ा    दिए ,
जितने    भी    मिले    दस्तूर    दुनिया  के चलन से |
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आज    तो    दर्द     से     मुलाक़ात    करने     दीजिये,
कबतक मेरे दर   से   वो   खाली      हाथ    जाये ?
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एक     दरिया    ख्वाब  में     आकर    यूँ   कहने लगा ,
औरों    की    तरह    तू  मुझमें  हाथ   धोता  क्यों नहीं "

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कुछ   लोग    तुकबंदियों    को    ग़ज़ल      कहते     हैं,
जैसे    ग़रीब    झोपड़े    को      महल    कहते      हैं |

जमाने       में     किसी    काम      की    आगाज़   को ,
कुछ       लोग ,   आरम्भ,   कुछ    पहल    कहते  हैं |

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ग़मों   को   पी     जाईये,     खुशियों      को    बाँटिये,
फूलों    से     राह    सजाईये ,   काँटों     को   छांटिए |

हमदर्दी   से   दिल     मिलाईये,   दुश्मनी    को  पाटिये ,
अमन   का   पैगाम   "रजनी"   सरहदों      में    बाँटिये |
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सागर   सा उन्मादी    हो , बस  दरिया   सा बहता  चल,
सहरा के अनल   सा    हो , बस समां  सा  जलता चल |


" सियहबख्ती     है                      पैवस्ते      -जबीं ,
एक       मिटे            तो   दूसरी     उभर   आती      है "
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रजनी नैय्यर मल्होत्रा 

सोमवार, सितंबर 17, 2012

दुपट्टे कांधे का बोझ बन गए



आ जाती थी हया की रेखाएं,
 आँखों में
जब भी ढल जाता था ,
कांधे से दुपट्टा |
शर्माए नैन तकते थे
राहों में
जाने -अनजाने निगाहों को,
जब भी हट जाता वक्ष से
आंचल  |
ख़ुद को
लाज के चादर में
सिमट कर
एकहरी
कर लेती थी ,
जब भी होती थी हवाओं संग
दुपट्टे की आँख मिचौली ,
हवाओं के रफ़्तार से ही
 हाथ थामते थे आँचल को ...
पर ये क्या हो गया ?
अचानक कैसी  आंधी आई
उड़ा  ले गयी
निगाहों का पानी  !
अब दुपट्टे
कांधे का बोझ बन गए
आंचल वक्ष पर थमते नहीं
ढलक जाते हैं !

 "रजनी नैय्यर मल्होत्रा "


शुक्रवार, सितंबर 14, 2012

सिर्फ़ हर वर्ष हिंदी दिवस मना लेने से क्या होगा ?

सुबह से रात तक हम हर किसी से (ज्यादातर ) हिंदी में ही बात करते हैं , फिर भी हिंदी को घृणित नज़र से क्यों देखते हैं ? अपने बच्चों को हिंदी में ही डांटते हैं , गलियां भी किसी को हिंदी में ही देते हैं , राशन से लेकर सब्जी, का मोल भाव भी हिंदी में ही बोल कर बात कर करते हैं , फिर क्यों जब हिंदी मीडियम की पढ़ाई .की या हिंदी विषय से पढ़ाई की बात आती है तो लोग नाक भौं सिकोड़ते हैं ?
अपने बच्चों को अंग्

रेजी मीडियम में पढ़ा रहे अच्छी बात है , पर हिंदी से दूर करना कहाँ तक सही है ,जो बच्चा हिंदुस्तान में पैदा हुआ ,हिंदी ज़मीं और जुबां का होकर भी ,सही ढंग से अपने मंथली टेस्ट या में , हिंदी के किसी भी परीक्षा में अच्छे ढंग से पास होने के नंबर भी नहीं ला पाता है , इससे साफ़ जाहिर होता है हम ,और आप आज अंग्रेजी के पीछे हिंदी को कहाँ छोड़ आये हैं |

दूसरे भाषा का जानकर होना अच्छी बात है ,पर उसके पीछे अपनी ही भाषा को नज़रंदाज़ करना ये तो वही बात हुई..........
दूसरे की माँ अपनी माँ से ज्यादा खुबसूरत हो तो क्या उसके पीछे अपनी माँ को छोड़ देंगे ?

सिर्फ़ हर वर्ष हिंदी दिवस मना लेने से क्या होगा ? जबतक इसपर सबकी सहमती की पुष्टि नहीं हो जाती कि हिंदी को ही सभी सरकारी, गैर सरकारी स्थान पर पहला स्थान मिलना चाहिए अन्य भाषा को बाद में |
हिंदी हमारी शान रही है, हिंदुस्तान की पहचान रही है ....आज 14 सितम्बर के ही दिन संविधान ने हिंदी को राजभाषा बनाने की मान्यता दी थी | हिंदी राजभाषा ,राष्ट्र भाषा , जन -जन की भाषा
बन कर अपनी उसी सम्मान को पा ले |

सोमवार, सितंबर 10, 2012

आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए

थम   गया  दंगा,  कत्ल   हुआ      आवाम     का , 
आ  गए घर जलानेवाले   ,  हाथों में  मरहम  लिए |

तारीकी  के अंजुमन   में,        साज़िश की  गुफ़्तगू,
आ गए सुबह    अमन का ,  हाथों  में  परचम  लिए |

सज़ावार     जो  हैं, "रजनी"  वो       खतावार     भी,
आ गए  चेहरे पर डाले नक़ाब  ,हाथों में दरपन लिए |
 

जुड़ा है दर्द ज़िन्दगी से,सूदखोर की तरह

 ख़्वाब आयें पलकों पर ,तमन्ना नहीं रही,
 कि  रातें  भी तो अब सुकून से कटती नहीं ,| 

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लिखनेवाले   ने, कतरे  को   भी  दरिया  लिखा ,
जब बात आई इतिहास की दरिया नहीं मिला कहीं |

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 हर  बार चुकाने की  सोचूँ   दर्द का ब्याज,
पर जुड़ा है  दर्द ज़िन्दगी से,सूदखोर की  तरह |
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" जो हर   बात पर दाद देते हैं , हर   बात  पर  वाहवाही ,
"सब धान बाईस पसेरी "उनकी महफ़िल  में गया तो पाया |

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एक राह है जो   मंजिल तक जाती है,
एक राह है   जो  मंजिल   भुलाती   है |

"रजनी"




रविवार, अगस्त 19, 2012

अल्लाह मेरे मुल्क में अम्नो अमाँ रहे


ईद मुबारक हो आप सभी को.........

अल्लाह मेरे मुल्क में अम्नो  अमाँ  रहे,
इत्तेहाद  भाईचारगी सदा    यहाँ   रहे |

हर दिन   ईद ,  हर   रात   दिवाली   हो
हिंदुस्तान    पर       ख़ुदा  मेहरबाँ   रहे |

झुक-झुक    कर  दुनिया   करे    सलाम,
दुनिया के आँखों का  तारा हिन्दुस्तां रहे |

दुनिया को  दिया  है  हमने  पैगामे अमन ,
ये  पैगाम  ता- कयामत  रवाँ- दवां    रहे |

हिन्दू,   मुस्लिम, और   सिक्ख,  ईसाई ,
हर रंग के फूल से  सजा गुलिस्ताँ   रहे |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा
बोकारो थर्मल (झारखण्ड )

मंगलवार, अगस्त 07, 2012

मंगलसूत्र और नारी




काले मोतियों में पिरोये ,
अनगिनत विश्वास
और शंकाओं को पाले,
डाले रहती है गले में
जान से भी बढ़कर
सहेजती है
इस काले मोती के धागे को |
खोने का
कभी  बिखरने का डर
सताता रहता है |
कुंदन में जड़ी हो
या कोरे धागे में,
कोई फर्क नहीं पड़ता ,
आस्थावान  होती है नारी,
विश्वास,अविश्वास से परे
 हर तीज-त्योहर पर,
मंगलसूत्र के लंबी उम्र की
करती है कामना |
बीते दिन  एक नारी की
 ले ली जान  मंगलसूत्र ने,
ये   खबर सुनकर भी,
आसपास
बरबस दुहरा गयी नारियाँ,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र  की |
पीट  गयी एक नारी  ,
शराबी के हाथों ,
होश में आते ही
बात जुबां पर आई,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र  की |
एक धागे की बढ़ा देती है बिसात,
कर देती है अमर
मनके के हर दाने को
अपने विश्वास से |
नारियां कहाँ छोड़ पाई हैं
आज भी अपने पुरातनपंथी  को ?
वो गंगू बाई हो या,
कंपनी की मीटिंग में बैठी
पुरुष से होड़ करती नारी ,
बातों -बातों में ,
छू जाते हैं उसके हाथ
गले के मंगलसूत्र को |
जन्म से ही बंध जाती है
मंगलसूत्र से नारी
और चाहती है जीवनपर्यंत
इससे बंधे रहना |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

रविवार, अगस्त 05, 2012

कलम के सिपाही उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जन्मदिवस पर




कल कलम के सिपाही उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जन्मदिवस पर बोकारो के नावाडीह ग्राम के आदर्श ग्राम विकास सेवा समिति की ओर से मुझे भी निमंत्रण मिला नावाडीह आने के लिए | नावाडीह पहले से ही उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र के रूप में आम
लोगों मन में बसा है , बात काव्यगोष्ठी की थी और उस पर एक चुनौती उग्रवाद क्षेत्र | किसी ने कहा मुझे मत जाईये वहां , खतरा कब आ जाये , और वैसे भी जगह बिलकुल जंगल से भरा है और ग्रामीण इलाका है , पर, मेरी जाने की इच्छा को देखते हुए पति और स्वसुर जी ने मुझे जाने की इजाज़त दे दी| देवर के साथ मैं बाइक पर ही निकली, कभी पक्की सड़क ,कभी पगडंडियों के रास्ते जंगलों का विहार करते हमलोग कई गांवों ( पिलपिलो, सरुबेड़ा, पलामू ) से गुजरते हुए , आखिर नावाडीह पहुँच गए , ये मेरा पहला अनुभव था ऐसे किसी ग्रामीण क्षेत्र में काव्यगोष्ठी के लिए जाना , और एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर उग्रवाद क्षेत्र में जाना , पर वहां जाकर सबकुछ सामान्य लगा ,सभी आम इन्सान हमसभी के जैसे ही अपने-अपने कार्यों में थे | आदर्श ग्राम विकास सेवा समिति की और से एक ये काव्यगोष्ठी प्रेमचंद जी को सम्मान देने के लिए रखा गया था| मेरे साथ अन्य लोग भी मौजूद थे जिनमें श्यामल बिहारी महतो जी कथाकार ,जो तारमी कोलियरी के कार्मिक विभाग कार्यालय सहायक के पद पर कार्यरत है, इनकी पुस्तक कहानी संग्रह "बहेलियों के बीच" व् लतखोर प्रकाशित हो चुकी है , जलेश्वर रंगीला जी कवि व् पत्रकार जिन्होंने अपनी २ कविता सरकार और समाज पर सुनाई | कवि शिरोमणि महतो जी जिनकी " काव्य संग्रह "कभी अकेले नहीं आ चुकी है , इन्होने भी अपने विचार प्रेमचंद जी से सम्बंधित रखे |
वासु बिहारी जी खोरठा के प्रतिष्ठित कवि जिनकी काव्यपाठ आकाशवाणी व् दूरदर्शन में हो चुकी है | नेता पर इनके शब्द्वान निशाना लगाते रहे | हिंदी और मैथिली के विख्यात कवि हरिश्चंद्र रज़क जिन्होंने नारी के सम्मान में अपनी एक कविता पढ़ी "कौन कहता है नारी अनाड़ी है ,जबकि ये देश की खिंच रही गाड़ी है, समाजसेवी व् उभरते कवि सुमन कुमार सुमन के साथ वासुदेव तुरी ने अपनी रचना पढ़ी | सेवा समिति के सचिव वासुदेव शर्मा , व् कोषाध्यक्ष प्रेमचंद महतो ने समापन व् धन्यवाद विचार रखा | सभी के उपस्थिति में ये गोष्ठी हुई .मुझे बताते हुए अति हर्ष का अनुभव हो रहा , जहाँ जाने के नाम पर लोगों के कयास ने मुझे अन्दर से डरा कर रख दिया था वहां श्यामल बिहारी महतो जी, वासु बिहारी जी , और मुझे सम्मान के साथ मुख्य अतिथि के पद पर आसीन किया गया | गोष्ठी का मुख्य मुद्दा रहा उपन्यास सम्राट से सम्बंधित अपने अपने विचारों का प्रस्तुतिकरण और साथ ही अपनी किसी भी विधा में कविता पाठ , हल्की- हल्की बारिश में ही ये गोष्ठी करीब ४ घंटे तक शांति रूप से चली और सांयकाल के 5 बजते तक समाप्त हो गयी | जिस डर से मैं बेफिक्र निकली थी घर से, उसी निर्भयता के साथ वापस अपने घर भी आई |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
बोकारो थर्मल

शुक्रवार, जुलाई 20, 2012

 मैं   बहुत   परेशान हूँ  अपने  देश   के   हालत   पर,
 कोई लड़ रहा भाई- भतीजा कोई      जातिवाद  पर |

सरहद  पर   खून शहीदों का  जैसे  वारि की  धारी  है ,
हर दिन नए  घोटालों में  सनी    सियासत    सारी   है |


 जज़्बे पर हालात कभी,  हालात पर जज्बा भारी है ,
 हो जाओ तैयार नस्ल-ए-नव अब तुम्हारी  बारी है |

 "रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

गुरुवार, जुलाई 19, 2012

चला कहाँ बलखाते लश्कर सहाब का

क्यों न कहूँ इसे मौसम की  साहिरी,
बूटे-बूटे में सब्ज़ की सावनी छटा है |


चला कहाँ बलखाते लश्कर सहाब का,
ऐसे लगे किसी की जुल्फों की घटा है |


झील के सीने पर रवाँ हंस का जोड़ा,
शायद एक - दूसरे पर मर   मिटा है  |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

बुधवार, जुलाई 04, 2012

बाद मरने के भी "रजनी" लोग याद करें

ग़मगीन बेसहारों के घर को आबाद करें,
कुछ पल ही सही यतीमों को शाद करें |


ता -दम -ए ज़ीस्त नेकी में बर्बाद करें ,
शायिस्तगी हो सब में फरियाद करें |

बन कर शब माह तारीकी को बर्बाद करें,
सहराई को गुलशन सा आबाद करें|

दर्दमंदों के खिदमत में आगे हाथ करें,
बाद मरने के भी "रजनी" लोग याद करें |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

शनिवार, जून 09, 2012

मुझे जन्मदिन  की स्नेह और शुभकामनायें देने  के  लिए, दिल की गहराइयों से आभार सहित आपको  शुक्रिया , इसी तरह स्नेह के सागर में डूबे  हुए , अमूल्य मोती सा  ,  आपका स्नेह मुझे सदा मिलता रहे ।
 स्नेह के साथ ........ 
" रजनी नैय्यर  मल्होत्रा "


शुक्रवार, मई 11, 2012

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे (लघु कथा)


शेखर जंक्शन पर दामिनी के आने का इंतजार रात के ग्यारह बज़े से ही कर रहा था , जैसे जैसे रात गहराती गयी स्टेशन  की दुकाने बंद होती गयी और सन्नाटा पसरने लगा | रात के ठीक 1.30 बज़े इंटरसिटी  एक्सप्रेस अपने समय पर पहुँच  गयी , रात होने के कारण जंक्शन सुनसान सा था दो-चार लोग नज़र आ रहे थे | शेखर का इंतजार ख़त्म हुआ ट्रेन आकर लग गयी उसने कोच २ में दामिनी को खिड़की  से देखते हुए  हुए आवाज़ लगायी , दामिनी अपने सामान समेट रही थी और अपने माता-पिता  से विदा लेते हुए शेखर के साथ नीचे आ गयी, दामिनी अपने माता पिता के साथ कई धार्मिक स्थलों से  घुमकर  वापस आ रही थी , जिसे शेखर ने ही उस जंक्शन पर उतरने को कहा था कि वो उसे लेने आ रहा  यहीं से वो वापस घर चली आएगी | वे  प्रतिक्षालय में ना जाकर  सामान और बच्चों को लेकर प्लेटफोर्म ३ कि तरफ बढ़ने लगे वही पर उनके घर जानेवाली ट्रेन लगी हुई थी जो सुबह के ३.३० में उस जंक्शन से खुलती है | बच्चों को लेकर सीट में दामिनी भी सोने की कोशिश करने लगी पर कुछ मच्छरों कि फ़ौज और प्यास लगने से वो सो नहीं पाई उसने शेखर को पानी लाने के लिए कहा पर उसने दामिनी को ही कहा  बाहर जाकर नल से आँखों और चेहरे को धोले जिससे वो कुछ अच्छा महसूस करेगी | बेटी नंदिनी को लेकर बाहर नल से चेहरे को धोकर  पानी लेकर  दामिनी वापस डब्बे में  चली जाती है | वो रात १३ अप्रैल की रात थी ,ना जाने क्यों उस दिन काफी आवारा से  लड़के स्टेशन पर घूम रहे थे , शक्ल और हुलिए से  न तो मजदूर दिखते थे न ही विद्यार्थी | सबके सब रंगदार से कमीज पैंट, कुर्ता पैंट | सबके हाथों में कुत्ते बांधनेवाली  चैन , मोबाइल  और सर पर रुमाल ऐसे बंधे जैसे कफ़न बांध  कर घर से चले हों| उनमे से कुछ गोल बनाकर पानीवाले नल के पास खा भी रहे थे , और उन्होंने दामिनी को डब्बे में चढ़ते हुए देखा भी | खाने के बाद उनमे से तीन-चार लोग उठे और ठीक उसी डब्बे के सामने लगे बैठकर मोबाइल पर  गाना बजाना बार-बार ---छूना न छूना न, कभी चिकनी चमेली | पन्द्रह बीस मिनट तक ये तमाशा  देखने के बाद दामिनी ने ही शालीनता से डब्बे के खिड़की से कहा बेटा तुमलोगों को गाना ही बजाना है तो जाओ कहीं और जाकर बजाओ या आवाज़ कम कर लो , सुबह जल्द स्कूल बच्चों को जाना  है , मुझे भी निकलना है,  सारी रात ट्रेन में भी उतरने के लिए जागते रहे सो नहीं पाए हमसब,  नींद आ रही सोने दो | उनमे से एक ने कहा ठीक है आंटी हमलोग अब नहीं बजायेंगे , पांच मिनट तक उनकी ओर से कोई शोर नहीं आया, पर अचानक ही एक साथ तीन-तीन मोबाइल पर अलग-अलग गाने जैसे कान फाड़ने वाले  हों बजने लगे | इस पर दामिनी ने शेखर से कहा कितने उदंड हैं ये लोग उम्र भी उतनी नहीं पर हरकत तो देखो इनकी , बार-बार मना करने पर भी सुनाई नहीं दे रहा इनसबको, सुबह जल्द स्कूल भी जाना है ,  तुम्हें भी ऑफिस निकलना है, और आँखें नींद से ऐसे हैं जैसे  कंकड़ चुभ रहे हो आँखों में | अब इस बार खिज़ कर शेखर ने दामिनी का साथ देते हुए कहा अरे तुमलोग सुनते नहीं हो क्या कहा जा रहा, कुछ तो संस्कार मिले होंगे  , शिष्टाचार लगता है मालूम ही नहीं तुमलोगों  को यहाँ से वहां तक ट्रेन में स्टेशन में तुमलोगों को यही जगह मिला गाना बजाने  के लिए | उनमे से दो उठ कर चले  गए  एक जो बाकी रहा वो कुछ देर बैठा रहा फिर एकाएक उठा और जाते कहता गया हमलोग तो " शिष्टाचार को आचार बना कर खा गए " इस ट्रेन में अभी भी बिजली नहीं थी, बाहर की ही रौशनी जो छन कर आ रही थी | और वे लोग दामिनी को अकेली समझ कर उसे परेशान करनेवाली मंशा से ये हरकतें कर रहे थे , | अब उनकी हरकतों को नज़रंदाज़ कर दामिनी भी सोने की कोशिश करने लगी जैसे शेखर व् बच्चे थे, ३.१५ हो रहे थे अब सब डब्बों में बिजली आ गयी थी, अब वे लोग  बंदरों सी भाग दौड़ कभी इस डब्बे में कभी उस डब्बे में करते  रहे , और कुछ शेखर की डब्बे में भी कोई यहाँ कोई वहां छितरकर बैठ गया | और लगे आपस में टिप्न्नियाँ कसने , बच्चों  बोलो ए फॉर अप्प्ल , बी फॉर बॉय , अरे सो न रे सुबह स्कूल जाना है .......कह कर हंसने लगे अब शेखर ने थोड़ी कड़ी रुख अपनाई उसने उठ कर उनको डांटते हुए कहा बड़े बद्द्तामिज़ हो तुमलोग जाना कहाँ है तुमलोग को ? पर वो ही लोग बेशर्मी से शेखर को बोलने लगे आपका घर नहीं है ये , ट्रेन में टाइम पास करने  के लिए कोई टाइम नहीं होता है | उनकी उम्र कोई खास नहीं थी सब के सब १५-१७ साल के बीच के थे पर व्यवहार पूरा  आवारा, और गंवारों वाली ,दामिनी अब  फुसफुसाते हुए शेखर को कुछ भी कहने को मना करने लगी | ये लोग न तो शिक्षित हैं ,न इनमे संस्कार शिष्टाचार  ही है , इतना ही पता होता तो बार -बार मना करने पर वो लोग उत्पात नहीं मचाते | उपदेश वहां काम आता है जहाँ समझ हो, ये लोग तो शक्ल से ही अनपढ़ ,जंगली ,और आवारा दिख रहे तुम मुंह लगोगे और तुमसे उलझ पड़े  तो ? सुबह के ३.३० हो चुके थे अब ट्रेन भी खुलने की  सीटी देकर आगे बढ़ने लगी | अबतक जितने भी उनमे से नीचे थे लगे उछल कर चढ़ने , औए उस डब्बे में ही यहाँ वहा कर भर गए , और तेज़ आवाज़ में फिर मोबाइल पर गाना चलाने लगे  ये कह कर की लगाओ सब अपने अपने मोबाइल में गाना देखें साला कौन रोकता है ......जब ट्रेन थोड़ी गति पकड़ ली तब जिस लड़के को शेखर ने डाटा  था उसने एक काले से लम्बे पतले लड़के को हाथ पकड़े  ठीक शेखर के पास लाया और बोला भईया  हमलोग गाना सुन रहे थे तो ये ही मना कर रहा था बजाने से |उसने दहाड़ते हुए कहा पहचानते हो की नहीं, शेखर को सम्भाले बिना ही उसने अपना एक जोरदार चांटा शेखर को देने के लिए हाथ उठाया ही था की शेखर ने उसका हाथ रोक लिया और ये कहा कि शायद  तुम नहीं पहचानते , एक तो गलती करते हो तुमलोग और ऊपर से परेशान करते हो दादगिरी दिखाते हो उतरना कहाँ   है तुमलोग को ? उसने फिर उस लड़के से कहा बता तो रे और कोई था जो तुमलोग को मना कर रहा था ,  उनदोनों की बढ़ती झड़प को देखकर पास डब्बे से दो व्यक्ति  और आ गए जिन्होंने शेखर को ही कहा जाने दो भईया आप ही शांत  हो जाओ ,  कह कर हटाते हुए शेखर को अलग किया |   हम लोग भी तो झेल  रहे थे इन सबकी  हरकत को ,  पर क्या करें आप भी झेल लेते |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
बोकारो थर्मल

बुधवार, मई 09, 2012

Beti Bachao ,Rajni's Interview.FLV

Beti Bachao Rajni's Interview . India News .Hariyana (Rewadi) ........ Ek Koshish Mil Kar Karen ...

http://www.youtube.com/watch?v=pvImPQUjjd0

मंगलवार, मई 08, 2012

माँ

 जब भी लिपटती  हूँ ,
 माँ   से  ,
मैं बच्ची हो  जाती हूँ ,
उन्हीं  बचपन की  यादों में ,
मीठी लोरी में खो जाती हूँ ।
जीवन की राहों में, 
धुप   में, छाओं   में ,
बुलंदी की   मचान पर,
उम्र की ढलान पर ,
 एक  मजबूत तना  हूँ मैं।
पर, माँ के आगे 
कमज़ोर लता हो जाती हूँ ।
जब भी निकलती हूँ ,
मैं घर से अकेली 
 संभल  कर जाना,
जल्द आना ,
यही हर बात पर ,
दुहराती है  माँ ।
दुनियां की बद्द् नजर से 
बचाने  को अब भी ,
मुझे ,
 काला  टीका 
लगाती है माँ ।

" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
  

बुधवार, मई 02, 2012

कोमल नारी

हर नारी के अन्दर ,
होती है एक नारी ।
 कोमल, शांत,मृदुल,
कठोर ।
नारी  जोड़ती  है
तिनके  जैसे घर को,
दे देती है रूप नीड़  का ।
करती रहती है बचाव,
इसमें रहनेवाले,
पलनेवाले, व् संग चलनेवाले का |
कभी बनकर धाय, कभी जन्मदात्री,
कभी सहचरी |
और भी ना जाने कितने नामों से
उपनामों से,
रूपों से संबोधन पाती है |
सहती है जीवन में आये ताप को,
सहती है कभी संताप को
जलता है  जिस्म , कभी आत्मा |
कभी रोती है
नारी होने के श्राप से,
कभी नारी  होने  के गर्व को
कंधे पर ढोती है |
जब कभी परेशानियाँ घेर लेती हैं
अमावस का  चाँद जैसे घिर जाता है |
और " नारी " -------- ना हारी को सिद्ध कर देती है,
हर एक उलझन के गांठ को
खोल देती है आहिस्ता- आहिस्ता ,
बादलों से छँटकर जैसे आकाश  हो जाता है |
बना देती है
एक उजड़े वीरान  झोंपड़े को भी ,
अपने संस्कार, कर्तव्य, और परस्पर सौहार्द  से |
तैयार कर देती है परिवार की पृष्ठभूमि,
ठीक वैसे ही,
 जैसे मिटटी गारे से दीवार की ईंट ,
हो जाता है एक महल तैयार |
शांत कोमल, मृदुल नारी भी
बनना चाहती चाहती है
कठोर,
पर रोक लेती है
ख़ुद को इस अवतरण में आने से,
जब देखती है
मासूम बच्चों को,
जब देखती है जीवन की धूप में
दिनरात पिसते हुए
सहचर को,
और  कठोरता के सांचे में
ना ढल कर
वो फिर से बन जाती है
कोमल नारी |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "








 

रविवार, अप्रैल 29, 2012

मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ






मजदूर के दर्द पर मेरी एक रचना जो बहुत पहले लिखी थी, आज आप सभी के बीच साझा कर रही

आज    दिल  का    दर्द    घोल    रहा   हूँ,
मज़दूर  हूँ अपनी मजबूरी  बोल  रहा   हूँ |

ग़रीबी      मेरा     पीछा   नहीं       छोड़ती,
क़र्ज़    को   कांधे पर   लादे   डोळ  रहा हूँ |

पसीने   से तर -ब -तर   बीत   रहा  है  दिन,
रात पेट  भरने को नमक  पानी  घोल रहा हूँ |

आज    दिल     का   दर्द    घोल     रहा   हूँ,
मज़दूर    हूँ   अपनी    मजबूरी  बोल  रहा हूँ |

बुनियाद   रखता    हूँ  सपनों    की   हर  बार,
टूटे    सपनों   के    ज़ख्म   तौल    रहा     हूँ |

मज़दूरी   का   बोनस     बस      सपना    है,
सपनों   से   ही   सारे    अरमान   मोल  रहा हूँ|

रजनी नैय्यर मल्होत्रा





























































शनिवार, अप्रैल 28, 2012

कर दी कुर्बान अपनी  मुहब्बत जिन्होंने हँसते- हँसते,
क्यों   न    आया   उनका    नाम   शहीदों   में ?
छिन्न      कर     भला    क्या   हासिल   होता,
बुजदिलों   की     कमी    नहीं   थी ज़माने  में ।   

"रजनी "

शनिवार, अप्रैल 14, 2012

ये कैसी रिश्तों की विदाई

घरों   के    बंटवारे   में     रिश्ते    सिमट      गए,
कल  तक घर   था  अब  कमरों   में   सिमट  गए.

भाग   दौड़   करते   थे   सारे   घर   में   कूदाफांदी,
छीन   गयी    उन   मासूम  बच्चो    की   आज़ादी.

दादा,- दादी,   चाचा - चाची, रिश्तों का ये भारीपन,
बड़ों   के   मतभेद   में   ना   पीसो  बच्चों  का  मन .

बंटवारे   की   शर्त  घरों   को दीवारों   में  पाट  गयी
दिल   से  जुड़े   रिश्तों  को   मतलबों  में   बाँट  गयी

खेल खेल में चुन्नू,मुन्नू  बिन्नी का व्याह  रचाते  थे,
 वक़्त   विदाई आने पर ,एक दूजे  को   ताब बंधाते थे.

आज   वो   दिन   भी    आया  बिन्नी   हुई  परायी ,
 उसकी डोली को देने  कान्धा, आया   ना कोई भाई,

ये       कैसी           रिश्तों        की            विदाई,
ये       कैसी          रिश्तों        की             विदाई ?

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"


रविवार, अप्रैल 08, 2012

विमान परिचारिका

अक्सर कहती थी मुझसे,
जब भी वो फुरसत के लम्हों में
मेरे साथ होती ,
"मुझे चाँद पर जाना है"
सुनकर मैं हंस देती,
तुम क्या-क्या करोगी?
अजीब सी तमन्नाएं सुनाती रहती हो ,
कभी विमान परिचारिका
बनने का सपना ,
कभी कहती काश मै परिंदा होती,
सारा आकाश नाप आती,
पर चाँद पर जाने के लिए परिंदा होना काफी नहीं ,
कह कर मायूस हो जाती
फिर कुछ पल खामोश रह कर,
करती कुछ सवाल..
क्या मन की खूबसूरती काफी नहीं,
कुछ पाने के लिए ,
तन की खूबसूरती ही जरुरी है
विमान परिचारिका
बनने के लिए मेरे पास खुबसूरत मन तो है,
पर खुबसूरत चेहरा कहाँ  से लाऊं ?
उसकी वो ख़ामोशी, वो तड़प,
अंतर्मन की चाह
सब मुझे ऐसे प्रतीत होते थे
जैसे आम सी ज़िन्दगी ,
और आम इच्छाओं को लिए लोग
अंतर्मुखी स्वभाव ,
पर गहरी  सोंच में वो चाहत ,
एक कील सी दबी थी|
वक़्त की बदलती करवटों में
धुंधली होती गयी हर तस्वीर
जो खिंची थी उसने
मेरे साथ बैठ कर|
अनायास ही एक दिन ,
वो ज़िन्दगी और मौत से लड़ रही,
अस्पताल के बिस्तर पर,
मुझे देखते ही बस इतना कहा .......
"अब तो कोई योग्यता नहीं चाहिए मुझे चाँद पर जाने के लिए "
मेरी अर्जी शायद सुन ली उपरवाले ने,
अवाक् उसे देखती रही ,
पत्थर की तरह हो गयी  ,
 मै एक पल को,
आज जब भी,
 दिन हो या रात
चाँद देख कर
वो नज़र आती है,
जो कहीं छुप गयी
चाँद के पीछे |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

रविवार, मार्च 25, 2012

कौन सा ऐनक लगा लूँ मै

कौन सा ऐनक लगा लूँ मै,
जिससे ढँक जाये
तैरती हुई नमी आँखों की,
तुम तो आसानी से छुपा लेती हो
कई राज़,
अपने गर्भ में,
मचलते हैं कभी
लावा बनकर
जब जज्बात अन्दर,
तोड़ने को व्याकुल होकर
पाकर कमजोर सतह को,
समेट लेती हो
बड़े अनूठे अंदाज़ में,
जिसे बंजर के नाम से
पुकारते है कभी-कभी लोग,
कौन जाने,कौन समझे
जब सम्पूर्ण तरलता छा जाएगी,
तो होगा ना सृष्टि का विनाश,
तुमसे ही तो सीखा है ,
ऐ धरा ?
प्रयत्न भी है,
न तोड़कर बाहर आ जाये,
मन के उदगार का सोता,
और ले ले कोई रूप
जलते हुए ज्वालामुखी का,
या फिर लहरें हिलोर लेते,
न बदल जाएँ तूफान में,
नहीं होना चाहिए
रिश्तों के भूमि का
आच्छादन,
जिससे रिश्ते की भूमि
हो जाये बंजर,शुष्क,
डरती हूँ तरलता से भी,
क्योंकि,कमजोर नींव
तरलता पाकर
गिर जाती है|
पहना दो कोई ऐनक
मुझे भी,
जिसमे न दिख पाए
आर-पार,
शुष्क है निगाह
कि वहां नमी है |
"रजनी"
******************

शुक्रवार, मार्च 16, 2012

नहीं मिलती कहीं राहत जहाँ में , ग़म के मारे को

मेरी तबीयत भी मिलती है नदिया के पानी से,
जो पल में बदल देती है अपने धारे को |

इस रास्ते मैंने गुज़ारे कई सफ़र तन्हा ,
मगर दिल ढून्ढ़ता है आज किसी सहारे को |

मिटा न दे लहर ,किनारे पर नाम लिखा तेरा
छिपा दिया पत्थर से, उस दरिया के किनारे को |

डगमगाते क़दम को जिससे मिल गयी मंजिल,
कैसे भूल जाये कोई उस राह के नज़ारे को |

मिले बातों से तस्कीन , कुछ पल भला "रजनी",
नहीं मिलती कहीं राहत जहाँ में , ग़म के मारे को |

--
रजनी मल्होत्रा नैय्यर

बुधवार, मार्च 07, 2012

इस बार होली में

 दिल  का टुकड़ा , रहा बरस भर घर से  बाहर
माँ  चूमे  मुखड़ा , घर  बेटा आया होली   में |

मेहँदी   छूटने  से पहले  चला गया  परदेश   जो
बिछड़ी उस विरहन से मिलने , आया  होली   में |

जिस बेटी की हुई विदाई इसी माह  के अन्दर,
पलकें भींगी राह तकेगी, इस बार   होली  में |

कल तक  रंजिश   थी  जिसको  जिस किसी  से ,
मिलकर  साथ  में ,  धो  डालो  रंजिश होली  में |

सूना है "रजनी" वो छोड़कर  फिरसे   चला जायेगा ,
जो  रंग कभी ना जायेगा,   डालो इस बार  होली में |




शुक्रवार, मार्च 02, 2012

कोख के चिराग़ को

हर बात ,
घुमती रही उसके ज़ेहन में
सारी रात,
कहीं कल का सवेरा
न बुझा दे,
मेरी कोख के चिराग़ को
अगर फिर से कट गयी
मेरे कोख में बेटी |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

शुक्रवार, फ़रवरी 24, 2012

जैसे कोई ख़्वाब से हिलाकर जगा दिया हो

दिन इधर जो  बीते कुछ इस तरह से  मेरे
जैसे कोई ख़्वाब से हिलाकर जगा दिया हो

दे  कर   सामने    मुरादों  से   भरी  थाली
लेने   की सूरत  में  फ़ौरन  हटा   दिया हो

हसरतें  देकर"रजनी" उमंगों से  जीने  की
आख़िरी ख्वाहिश    में कज़ा दे   दिया   हो


शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2012

गुजरे बरस ये तेरह , जैसे कटे बनवास

गुजरे बरस   ये   तेरह , जैसे कटे बनवास ,
फिर उठी मन में  कामना   मधुमास   की.

आज मेरे विवाह को तेरह वर्ष पूरे हो गए, अपने मन के विचारों को शब्दों में पिरो कर हर वर्ष की तरह आज भी एक रचना  अपने पति राजेश के लिए


******************************

मैं शब्दों    में बंधकर   लड़ी  बनू,
तुम   मेरे  गीत के तान  बनो.

थक गए पग मेरे  चलकर  तन्हा ,
मेरे ज़र्जर  तन   के प्राण  बनो.

मै   बनूँ   दीपों  की    मालिका,
तुम अमर  लौ   की   बान बनो.

मै   बन   जाऊं  ग़ज़ल    तेरी,
तुम    महफ़िल  की  शान बनो.

मै पावस की सुरभित  रजनीगंधा,
तुम खुला निलाभ आसमान बनो.

मै बनू   सुहासिनी तेरी  "रजनी" ,
तुम जन्मों  तक मेरे सुजान बनो.

"रजनी"
************************************

गुरुवार, फ़रवरी 16, 2012

टूटी कश्ती थी, मझधार में चल रही थी

टूटी हुई कश्ती थी मझधार में चल रही थी 
कभी   डूब रही  थी    कभी संभल रही  थी

वक़्त की  मुट्ठी में  थी   तकदीर   मेरी  
कभी बिखर रही थी कभी बदल रही थी

हिकायत -ये माज़ी में   डूबे   चश्म- तर
आंसुओं की बारिश में  भी जल रही  थी

अमा निशा की ख़ामोश फिज़ा थी, "रजनी"
ख़्वाब था हक़ीकत सा और मै बहल रही थी

मंगलवार, फ़रवरी 14, 2012

ये गुलाब




एक सुर्ख़ गुलाब देकर
कर देते हैं
अपनी  भावनाओं का
इजहार लोग़
यदि
यही है
अपने प्रीत को बयाँ करना
तो कई बार बांधे मैंने
तुम्हारे जुड़े में सुर्ख़ गुलाब |
और , तुम मुस्कुरा कर
अपने हाथों से
छू कर गुलाब को
कह देती हर बार
कितनी फबती है
मेरे  गौर वर्ण पर,
काले बालों में
यह लाल गुलाब !
मै हर बार ठगा सा रह गया
शायद
कभी तो समझ पाओगी
मेरे अनकहे अहसास को |
क्या ये गुलाब
जिसे ,
प्रेम का प्रतीक कहते  आये हैं लोग़
वो  रह गया
मात्र एक
श्रृंगार  बन कर |
कभी देवताओं के सर का,
कभी रमणी के ?

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"


सोमवार, फ़रवरी 13, 2012

प्रेम , प्रेम ही होता है



प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
चंचल मन को मिलन की तिश्नगी,
जीवन को दर्पण देता है|
तन,मन धन सर्वस्व न्योछावर ,
पथरीले राहों में मंजिल को संबल देता है|
दुःख-सुख के पलों में आलिंगन देता है
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
अदभुत है इस प्रेम की रीत,
त्याग का दूजा  नाम है प्रीत|
जहाँ त्याग नहीं हो प्यार में,
वो प्यार  वफ़ा नहीं देता है |
प्रेम से  सुगन्धित संसार है,
ये फूलोँ में काँटों का हार है|
त्याग,बलिदान,वफ़ा से ,
जुड़ा प्यार का नाता है|
सिर्फ प्रेम को पाना ही नहीं,
लूट जाना भी प्यार है|
संसार से जुड़ा हर रिश्ता प्रेम से गहराता है,
वो प्रेमी,प्रेमिका,भाई ,बहन, दोस्त,पिता - माता है |
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....


"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

गुरुवार, फ़रवरी 09, 2012

प्रेम , प्रेम ही होता है



प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
चंचल मन को मिलन की तिश्नगी,
जीवन को दर्पण देता है|
तन,मन धन सर्वस्व न्योछावर ,
पथरीले राहों में मंजिल को संबल देता है|
दुःख-सुख के पलों में आलिंगन देता है
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
अदभुत है इस प्रेम की रीत,
त्याग का दूजा  नाम है प्रीत|
जहाँ त्याग नहीं हो प्यार में,
वो प्यार  वफ़ा नहीं देता है |
प्रेम से  सुगन्धित संसार है,
ये फूलोँ में काँटों का हार है|
त्याग,बलिदान,वफ़ा से ,
जुड़ा प्यार का नाता है|
सिर्फ प्रेम को पाना ही नहीं,
लूट जाना भी प्यार है|
संसार से जुड़ा हर रिश्ता प्रेम से गहराता है,
वो प्रेमी,प्रेमिका,भाई ,बहन, दोस्त,पिता - माता है |
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....


"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

रविवार, जनवरी 29, 2012

बाक़ी है हर तहजीब पुरानी अभी तक गाँव में

बाक़ी है हर  तहजीब पुरानी  अभी तक  गाँव में,
जिस्म से हैं शहरों में बूढ़े जान अभी तक गाँव में.


फ़ैल गया  नफ़रत का ज़हर शहर के धूप-छाँव में,
प्रेम का पौधा फला  खड़ा  है  अभी  तक गाँव  में .

ईमेल   और  चैट  पर होती   है  शहरी  गुफ़्तगू,
डाकिये की राह देखें  लोग  अभी  तक  गाँव  में.

कट रहे   पेड़  शहरों में  अंधी  भौतिक   दौड़  में,
पूजते है  लोग नीम ,पीपल   अभी  तक गाँव  में.

उफ़न -उफ़न आती थी एक  पगली नदी की  धारा,
बरसात  में  सबको  डराती है  अभी  तक  गाँव में.

 नए जमाने को पसंद  डिस्को, पब, चाईनीज़, थाई,
 पुवों-पकवानों की महक आती है अभी  तक गावं में.

दिन  ढले   तक  सोते  हैं ये  मगरिब को ढोने वाले,
तड़के  ही उठ  जाते  हैं लोग  अभी  तक   गाँव  में.
रजनी मल्होत्रा  नैय्यर