गुरुवार, अगस्त 18, 2011

ये , रौशनी और दीया सलाई

   स्वास्थ्य खराब रहा ,  काफी दिनों बाद ब्लॉग  पर आई हूँ आपसभी के रचनाओं  से वंचित  रही .......... 


ये रौशनी , और  दीया  सलाई ,
सब मिलकर भी नहीं मिटा पाते हैं ,
अंतस के अंधकार को ,
अंतस  के बंद कमरों को ,
रोशन करने के लिए ,
नहीं पहुँच पाते चाह कर भी बाहरी उजाले ,
घेर रखी है एक चहारदीवारी सी ,
जिसमे झाँकने का एक झरोका भी नहीं ,
दरवाजे तो होते हैं पर बुलंद ,
जो खुलते हैं सिर्फ मन के दस्तक देने से ,
बाहरी रौशनी की छुअन या आघात,
नहीं हिला पाती है अंतस के दीवार को , 
किवाड़ को,
और  जरुरत ही  क्या है ?
दीया सलाई की.
अंतस के कमरे तो ख़ुद ही चेतना के जागने से ,
जल उठते हैं ,
और मन
नहा उठता है ,
रौशनी की जगमगाहट से .