मंगलवार, जून 28, 2011

चश्म -ये- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप

" चश्म -ये- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप,
कसीर-ये-रफ़ाकत के वादे टूट जाते हैं,
आतिश -ए  - सहरा होती है सादिक ,
वो तो उड़ ही जाती है लगाकर परवाज ."


चश्म -ये- जहाँ -- जमाने की नज़र , कसीर-ये-रफ़ाक -- गहरे याराने , आतिशे - सहरा-- जंगल की आग ,सादिक - सच्ची बात, सच्चाई ,परवाज-- पंख.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"