गुरुवार, जनवरी 06, 2011

कदम कदम पर बेबसी का शिकार ज़िन्दगी है

कुछ शाजिसों से होती शर्मशार ज़िन्दगी है,
कदम कदम पर बेबसी का शिकार ज़िन्दगी  है.

साथ मिला कदम से कदम ,जिनके हम चलते रहे,
वो ही छूपा कर खंजर, हमें बन रहनुमा छलते रहे.

एक  चेहरे पर कितने ही  चेहरे बदले आज इन्सान ने,
हैवान है या आदमी  शक्ल आये ना पहचान में.

बने फिरते हैं योद्धा तो आयें सामने  मैदान में,
छूप कर वार करना आदत  कायर इन्सान में.

आज हम पर दागी हैं अंगुलियाँ , तो शेर ना बन जायेंगे,
खुद की ही निगाहों में गिर, वो शर्म से मर जायेंगे.

किस हद तक आज गिर रहा इस दौड़ में जमाना  है ,
सच्चाई दम तोड़ने लगी हर कोई झूठ का दीवाना है.

"   रजनी नैय्यर मल्होत्रा "