बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

बुझने लगते हैं दीये हौसलों के, जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है

बुझने  लगते  हैं दीये  हौसलों   के,
जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है |

डगमगाते हैं हम राहों  में जीवन  के,
बुद्धि    नाकाम   हो   हाथ मलती  है |

जो   ना   हारें   नाकामी से  डर  के,
 तक़दीर सदा  संग उनके चलती है |

चीर   जाते हैं   जो  सीना  लहरों के,
उनसे  दुनिया  मिलने  में जलती  है |

क्यों  कमजोर  हों आगे   वक़्त   के,
ज़िन्दगी ऐसे ही करवटे  बदलती  है|

बुझने   लगते हैं   दीये   हौसलों   के,
जब   बुरे वक़्त की   आंधी चलती है|

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "