गुरुवार, अगस्त 19, 2010

छूट गया निगाहों का मिलकर मुस्कुराना,

छूट गया निगाहों का मिलकर मुस्कुराना,
आज जब भी भीगती हैं निगाहें तो हौले से मुस्काती हैं,
तेरे यादों का मेरी निगाहों से जाने कौन सा नाता है.
तस्वुर में जब भी आता है भीग कर भी मुस्कुराती हैं निगाहें.

शाम होते ही , बढ़ जाती हैं बेताबियाँ,

वो  ढला दिन,
गया आफ़ताब ,
अब फिर तू ,
जलने की,
तैयारी कर ले ,
शाम होते ही ,
बढ़ जाती हैं बेताबियाँ,
अब तो हवाओं से,
तू यारी करले.