बुधवार, जुलाई 21, 2010

खुद की पहचान भूल गयी.

"मुद्दत से संवारा था,
जिस अक्स को निगाहों ने,
आज उसे देखते ही,
खुद की पहचान भूल गयी.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

जब चाँद पूछता है मुझसे

जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे,
यूँ इठलाती हो,
तब मेरा इठलाना ,
कुछ और बढ़  jata   है,
बड़े ही इठलाते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
 जैसे तेरी चांदनी है,
 तेरी चांदनी से भी प्यारा ,
 मेरा जीवनसाथी है ,
जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे यूँ ,
इठलाती हो,
तब मेरी धड़कन सीने की,
 और बढ़ जाती है,
बड़े ही इठलाते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
जैसे चकोर ,
तुझे देखने को ,
रोज आता है,
मेरे चाँद का भी,
 मुझसे ,
ऐसा प्यारा नाता है,
जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे यूँ ,
शर्माती हो,
तब मेरा शरमाना ,
और बढ़ जाता है,
बड़े ही शर्माते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
मेरे चाँद का ये कहना है,
वो चाँद आसमां  का,
 तेरा ही एक टुकडा है,
 उस चाँद से प्यारा ,
सलोना तेरा मुखड़ा है,
जब सुनती हूँ अपने बारे में,
 मेरा इठलाना ,
और बढ़ जाता है,
मै कहती हूँ चाँद से ,
तेरे पास जैसे ,
तेरी चांदनी है,
 तेरी चांदनी से भी प्यारा ,
 मेरा जीवनसाथी है ,
अब चाँद कहता है मुझसे,
बिना तेल जो जल जाए ,
तू वैसी बाती है,
किस्मतवाला है वो ,
तू जिसकी जीवनसाथी है,
अब चाँद कहता है मुझसे,
इठ्लानेवाली बात है ये,
तू जिसपे इठलाती है,
किस्मतवाला है वो,
तू जिसकी साथी है.
"rajni"
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