रविवार, मई 02, 2010

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.



मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा ,
हर बात गवारा करलोगे मन्नत भी माँगा करलोगे,
ताबिजें भी बंध्वाओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
तन्हाई के झूले झूलोगे और बात पुरानी भूलोगे
आईने से घबराओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा,
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
जब बेचैनी बढ़ जाएगी और याद किसी की आएगी ,
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.

किसी ने  बहुत अच्छा  लिखा  है  इश्क  का   पहला  पहलू  दूसरा  पहलू मै   देने  की कोशिश कर रही उपरोक्त ग़ज़ल किसी के द्वारा मुझे मिला है जिसे मै अपने कुछ और सब्दों से सजा रही.......

कुछ पंक्तियाँ मेरो ओर से....

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बैठे तन्हा मुस्काओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
जगकर सपने बुनोगे हर गम को भूलोगे,
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बिन श्रृंगार सज जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बेचैनी भूल जाओगे जब एक चाँद सा चेहरा मुस्काएगा,
पतझड़ को भी सावन पाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
भूख नींद भूल जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.

"रजनी"

मजदूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ

आज मजदूर दिवस पर एक रचना मजदूर की मज़बूरी पर ...........

आज    दिल  का    दर्द    घोल    रहा   हूँ,
मज़दूर  हूँ अपनी मजबूरी  बोल  रहा   हूँ |

ग़रीबी      मेरा     पीछा   नहीं       छोड़ती,
 क़र्ज़    को   कांधे पर   लादे   डोळ  रहा हूँ |

पसीने   से तर -ब -तर   बीत   रहा   है  दिन,
रात, पेट  भरने को नमक- पानी  घोल रहा हूँ |

आज    दिल     का   दर्द     घोल     रहा   हूँ,
मज़दूर    हूँ   अपनी    मजबूरी  बोल  रहा हूँ |

बुनियाद   रखता    हूँ  सपनों    का   हर  बार,
टूटे    सपनों   के    ज़ख्म   तौल    रहा     हूँ |

मज़दूरी      का   बोनस     बस      सपना    है,
सपनों   से    ही   सारे   अरमान  मोल रहा हूँ|

आज    दिल   का    दर्द     घोल      रहा    हूँ
मज़दूर     हूँ    अपनी    मजबूरी  बोल रहा हूँ |

"रजनी"