मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

और फूल मुरझा गए



हर बाग़ को तेरे जैसा बागवान मिले,
हर बाग़ में खिज़ा में भी बहार खिले.

आये थे जब तुम खिज़ा में भी बहार थी,
छोड़ गए बाग उजड़ गया , हो गया  वीरान.

अब तो बहार में भी ये लगता है  वीरान,
हर सुबह इसकी हो गयी अब  काली शाम.

हर बहार में कलियाँ तुझे याद करती हैं,
आये वही बागवान  फिरसे,  फरियाद करती है.

कलियों पर तब  छाया तेरा सुरूर था,
उन्हें अपनी महक पर तेरा गुरुर   था.

अब ना रही वो कलियाँ,ना रहा वो गुरुर,
जब से गया बाग़  का बागवान दूर.

गाते भँवरे   जब कलियों पर मंडराते थे,
कलियों के मन तब खुद पर इठलाते थे

तुम क्या गए खिल पाई ना कलियाँ,
गुमसुम  सी हो गयी इनकी दुनिया.

और फूल मुरझा गए.तुम क्या गए,
खिली ना कलियाँ,और फूल मुरझा गए.

हर बाग़ को तेरे जैसा बागवान मिले,
हर बाग़ में खिज़ा में भी बहार खिले.

तुम क्या गए खिल पाई ना कलियाँ.
और फूल मुरझा गए.

"रजनी"